
रामनवमी पर ज्योतिर्विद पं. प्रभाकर शरण पाण्डेय का बिचार
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तिथि तक का काल वासंतिक नवरात्रि के रूप में मनाया जाता है
कुशीनगर/एम रिजवी
कुशीनगर नवरात्रि पूरे वर्ष में चार बार मनाये जाते हैं चैत्र का वासंतिक नवरात्रि और आश्विन का शारदीय नवरात्रि मुख्य नवरात्रि हैं तो आषाढ और माघ मास में गुप्त नवरात्रि पड़ता है पौराणिक कथाओं के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष से ही कल्पादि तिथि की प्रथम शुरुआत हुई और इसी दिन से सतयुग का प्रारंभ हुआ भगवान विष्णु के अवतारों में से प्रथम मत्स्य अवतार भी चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि को हुआ तो इसी माह के नवमी तिथि को त्रेता युग में भगवान राम का अवतार हुआ चैत्र नवरात्रि के मनाने की पौराणिक कथा यह है कि महिषासुर ने अपने कठिन तपस्या से प्रसन्न कर ब्रह्मा जी को प्रकट किया! उसने ब्रह्मा जी से अमरता की इच्छा प्रकट की!! ऐसा असंभव है यह समझाने पर उसने ब्रह्मा जी से यह वरदान मांगा कि कोई भी देवता दानव असुर,मानव यक्ष या त्रिदेव (ब्रह्मा विष्णु महेश) उसका वध न कर सकें और वह इनसे युद्ध में पराजित न हो!! ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर उसने सभी देवताओं को युद्ध में पराजित किया, उसका अत्याचार बढने लगा! भगवान विष्णु और शंकर भी उससे युद्ध में पराजित हो गये! अंत में सभी देवता भगवान के शरणागत हुए! भगवान ने देवताओं को बताया कि उसने अपने वरदान मे स्त्री से पराजित या वध होने की बात नहीं की थी इसलिए आपलोग जगत की आधारभूता मेरी योगमाया पराम्बा का आह्वान करें!! उन्हीं से उसका वध होगा!! देवताओं के आराधना से प्रसन्न होकर माता ने अपने नौ रूपों को नौ दिनों में इसी चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ कर नवमी तिथि तक उत्पन्न किया
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी!
तृतीयं चंद्रघंटेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्!
पंचमं स्कंदमातेति षष्ठं कात्यायनेति च!
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टकम्!
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता इस प्रकार चैत्र शुक्ल पक्ष के प्रथम तिथि से नवमी तिथि तक क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री नाम से नौ दुर्गा का प्राकट्य हुआ!
नवरात्रि विजयादशमी तक माँ के विजय रूप में मनाया जाता है
देवताओं त्रिदेवों ने अपने अस्त्र शस्त्र देकर माँ की बहुत काल तक आराधना की!! इसलिए यह नवरात्रि माँ के प्राकट्य और आराधना का पावन काल है!! माँ ने देवताओं की इच्छा की पूर्ति के लिए आश्विन मास की प्रथम तिथि से महिषासुर से युद्ध प्रारंभ किया और नौ दिन तक अपने नौ रुपों से युद्ध करते हुए दशमी को वध किया!! इसलिए आश्विन मास की नवरात्रि विजयादशमी तक माँ के विजय रूप में मनाया जाता है त्रेता युग में इसी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के नवमी तिथि को अभिजित मुहुर्त में पुष्य नक्षत्र में कर्क लग्न में मध्य दिवस में कौशल्या दशरथ के पुत्र रुप में अपने भक्तों के कल्याण के लिए प्रकट हुए नौमी तिथि मधुमास पुनीता!
सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता!!
मध्यदिवस अति सीत न घामा!
पावन काल लोक बिश्रामा भगवान राम का अवतार रामनवमी के रूप में तबसे हम सभी मनाते हैं! भगवान राम का अवतार जब हुआ तो सभी ग्रह योग वार तिथि अनुकूल हो गये और सभी प्राणी हर्षित हो गये क्योंकि सुख के मूल आनंद कंद सच्चिदानन्द भगवान आज नर योनि में राम के रूप में लीला रूप में अपने भक्तों को सुख प्रदान करने के लिए, विप्र धेनु, सुर संत के कल्याण के लिए धरा धाम पर अवतरित हुए हैं!!
चैत्र मास की नवरात्रि माँ के नौदुर्गा के रूप में प्राकट्य के साथ ही भगवान राम के प्राकट्य के सम्मिलित स्वरूप के कारण विशेष आध्यात्मिक शक्ति केंद्र से युक्त हो जाती है!! यह नवरात्रि रामनवमी तक साधना आराधना और तपस्या के लिए विशेष महत्व रखती है