
हे भगवान मेरे बेटे को बचा ले या हमे ही ऊपर उठा ले
24 घंटा ऑक्सीजन के सहारे जिंदगी और मौत से जूझ रहा है अंकुर
कुशीनगर
पडरौना नगर स्थित साहबगंज मुहल्ले के निवासी राकेश श्रीवास्तव के इकलौतू पुऐ अंकुर श्वास रोग (अस्थमा) से ग्रसित है उसका फेफडा पुरी तरह से खराब हो गया है। एम्स और मेदातां के चिकित्सकों के मुताबिक दो माह के भीतर अगर अंकुर के फेफड़ों का ट्रांसप्लांट नही हुआ तो उसे बचाया नही जा सकता है। इसके लिए तकरीबन 60 लाख रुपये का खर्च होगा। अपने बुढापे की लाठी के सहारे सुन्दर भविष्य की सपना देखने वाले पिता राकेश का उस समय पैर तले जमीन खिसक गयी जब उन्हे तीन माह पूर्व अपने लख्ते जिगर अंकुर की बीमारी की जानकारी हुई। वह काप उठे मानो उनकी दुनिया ही उजड गयी क्योंकि अट्ठारह वर्ष पूर्व इसी बीमारी ने असमय उनकी पत्नी को उनसे छिन लिया था। एक निजी कंपनी मे जीवन बीमा एजेंट के रूप मे कार्य करने वाले राकेश श्रीवास्तव अपने जिगर के टुकड़े की जिन्दगी बचाने के लिए अपने जिन्दगी भर की कमाई इकट्ठा कर अक्टूबर माह मे बेटे को लेकर मेदांता हॉस्पिटल दिल्ली गये।
अस्थमा बीमारी के चलते जिंदगी और मौत से जूझ रहा – अंकुर
यहां लाखो रुपये खर्च करने के बाद बेटे के बीमारी मे कोई सुधार नही हुआ तो फिर राष्ट्रीय क्षय एवं श्वास रोग संस्थान और एम्स मे महीनो भर्ती कराकर अपने बेटे का इलाज कराया। पानी की तरह पैसा खर्च करने के बावजूद यहा भी अंकुर के स्वास्थ्य मे कोई विशेष सुधार नही हुआ। फिर भी यह पिता हार नही माना वह अपने सगे- संबंधियों से कर्ज लेकर बेटे का इलाज कराते रहे, जब वह पुरी तरह से कंगाल हो गये तो चिकित्सकों ने यह कहकर उन्हे घर वापस भेज दिया कि दो माह के भीतर अगर हैदराबाद में अंकुर के फेफड़े का ट्रांसप्लांट नही हुआ तो उसे बचाया नही जा सकता इसके लिए लगभग 60 लाख रुपये खर्च लगेगा। पिता राकेश बिलखते हुए कहते है हर बाप की इच्छा होती है कि बेटे के कंधे पर उसकी अर्थी उठे लेकिन मै दुनिया का सबसे बदनसीब बाप हू जो अपने इस बूढे कंधे पर अपने बेटे की अर्थी उठाने का इंतजार कर रहा हू। तभी नब्बे वर्षीय बूढी दादी सुभावती देवी बोल पडती है भगवान हमके उठा ले हमरे बाबू के जिन्दगी बचा ले।